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Sunday, May 25, 2014

संगठन , सदस्‍य अौर सतुष्टि
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           पिछले दिनो एक सरकारी अशासकीय संस्‍‍‍था के चुनाव में जाना हुआ, संस्‍‍‍था साहित्यिक थी, ज्‍यादातर सदस्‍य सरस्‍वती को साथ लिऐ लक्ष्मी से जुझ रहे थे, इसलिऐ आर्थिक अंकगणित का ज्‍यादा फेर तो  था नहीं, पर संस्‍‍‍थागत आंतरिक लोकतंत्र जरूरी था ,सरकारी  पंजीयक के नियमानुसार हर एक साल आय व्‍यय और तीन साल में पदाधिकारीयो चुनाव का व्‍यौहरा प्रस्‍तुत करना जरूरी था, खैर नियत तारीख को तमाम कवि, लेखक, गजलकार, हजलकार, कहानीकार एकत्रित होने लगे, कई तो पुरे साहित्यिक गेटअप में कुर्ता पैजामा,पंकज उद्वास स्‍टाइल में शाल डाल कर , कुछ की चितकबरी बिखरी झितरी दाडी के पिचके गाल जो बता रहे थे कि माननीय किस कद्र अपना खून, कलम में उडेल उडेल के लिख रहे है, कई की जुलफे ही बता रही थी कि जनाब  किस तरह लटके झटके के साथ लिखते पढते होगे,  खैर एक पत्रकार किस्‍म के बुद्विजीवी को चुनाव अधिकारी नियुक्‍त किया गया, चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गर्इ ,बिरादरी साहित्यिक होने की वजह से गंभीर और शालीनता से योग्‍यता का सम्‍मान करने का नाटक जरूर कर रही थी पर चुनाव तो खैर चुनाव ही था जिसमे गुटबाजी, गिरो‍हबंदी कैसे न होगी, अगाडी पिछाडी की बात तो होगी ही, संस्‍‍‍था में पिछले चार कार्यकाल से काबिज सचिव ने पहले इस पद के लिऐ शिगूफा छोइ दिया, संस्‍‍‍था को मैंने बडी लगन और तत्‍परता से गौरवशाली मुकाम तक पहुचाया हैं, मुझे शक हैं कि मेरे से बेहतर कोई कुछ कर सकेगा इसलिऐ मेरे पद पर आने वाले शक्‍स को पहले मेरी कसौटी से रगड कर खरा उतरना पडेगा, तमाम साहित्‍यकार उलझने के बजाय वही साहब सचिव पद बनाने में मजबूर दिखे, मनमोहन किस्‍म के अध्‍यक्ष को यह कह कर सर्वसमम्‍ति से  पुर्नस्‍थापित कर दिया गया कि पिछला कार्यकाल सराहनीय था, और पिछले तमाम अध्‍यक्षो ने दो कार्यकाल पुरे किये हैं तो इन्‍हे भी मौका दिया जाऐ, बाद में कोई चरमपं‍‍थी अतिउत्‍साही गुट लोक सभा चुनाव की तर्ज पर समूल हटा ही देगा, इसी तरह एक व्‍यापक लामबंदी के साथ आऐ अतिम‍हत्‍वकाक्षी लेखक को अगले अध्‍यक्ष के  आश्‍वासन के साथ उपाध्‍यक्ष के पद से संतुष्‍ट किया गया, एक बुजर्ग को खाली कोष का कोषाध्‍यक्ष बना दिया गया, इसी तरह एक मीडिया परस्‍त को प्रचार सचिव के पद पर बैठा दिया गया, बायलाज के अनुसार पद खत्‍म ....,कुछ लकडी टेक कर आऐ, सफेद बालो की चमक लिऐ सरकारी वि‍ज्ञप्तिनुमा लिख लिख कर दरबारी हो चुके बिल्‍कुल पुराने किस्‍म के अनुदान पर जी रहे लोग भी पद तो चाह र‍‍हे थे पर  अध्‍यक्ष उन्‍हे कल का लौंडा नजर आ रहा था इनकी संख्‍या के अनुसार पांच पद संरक्षक के भी तैयार किये गऐ , पर एकत्रित अन्‍य कलमवीरो को भी ठिकाने लगाना आवश्‍यक दिख रहा था, सचिव ने चुनाव अधिकारी के काम पर विराम लगाते हुऐ मोर्चा सं‍‍भाल लिया, एक साहित्यिक पत्रिका निकालने के नाम पर प्रधान संपादक, प्रधान संपादक, उप संपादक, प्रंबध संपादक,सहायक संपादक, प्रचार प्रभारी, विज्ञापन प्रभारी बना दिया गया, फिर गद्रय और पद्रय के भी दो प्रभारी बना दिये गऐ , एक देहाती किस्‍म के लेखक को छतीसगढी रचना प्रभाग का प्रमुख बना दिया गया, इस लम्बी प्रक्रिया में कुछ के चेहरो पर अब भी झलक रही थी, चूकि संस्‍‍‍था का आकार और प्रसार बनाये रखना जरूरी था , इसलिऐ हरेक के मनोविज्ञान को समझना भी जरूरी था जा‍हिर था लेखन पठन तो एकांत में भी हो सकता था और पहचान कि मान्‍यता तो सबको चाहिये , बचे सदस्‍यो का भी कही तो नाम निशां हो, फिर बुद्विजीवी जहां हो वहां बुद्वि तो काम करेगी ही आनन फानन में संस्‍‍‍था के स्‍थापना दिवस के उत्‍सव की भूमिका तैयार कि गई और शेष बचे लोगो का एडजेस्‍टमेंट किया गया,एक उत्‍सव समिति बनी जिसमें स्वागत समिति , चिकित्सा समिति, प्रकाशन समिति, सफ़ाई और स्वास्थ्य व्यवस्था समिति, पंडाल समिति, बाज़ार समिति, जल समिति, रोशनी समिति, प्रचार समिति, संगीत समिति, सवारी व रेलवे समिति, टिकट कमेटी, सुपरिटेंडेंट लेडिज़ वालंटियर्स, सुपरिटेंडेंट ललितकला प्रदर्शनी,डेलिगेट कैंप समिति,अर्थ समिति, खजांची और भोजन मंत्री, व्यायाम और विनोद समिति सब में चार से पांच सदस्य,। इस तरह लगभग सौ लोगो की जम्‍बो मंडली तैयार हो गई, जिस हाल में चुनाव थी वहां तमाम पदा‍धिकारी ही पदा‍धिकारी दिख रहे थे , अब तो सामान्‍य सदस्‍यो का ही टोटा पड गया था, अब विचार ये करें कि ऐसी संस्‍‍था का समाज में उपयोग कैसे किया जाऐ ... कुछ सुझाव लिखिऐ.....

            ( इन पदा‍धिकारीयो अथ‍वा  समितियों के नाम के ज़रिये आप एक सिस्टम और संस्कृति को भी समझ सकते हैं । सोचिये कि आज के राजनीतिक संगठनो  का काम कितना बेहतर और पेशेवर होगा जिसमें सफलता में संतुलन का क्‍या योगदान होता होगा..............)          सतीश कुमार चौ‍हान ,  25/5/2014