जेब साथ न दे तो अन्ना ........ लोकपाल बिल के नाम पर हुई मुहिम से कुछ हो ना हो पर इस की परिभाषा पर चिन्तकन तो जरूर हो रहा हैं और हर कोई अपनी कमीज को झक सफेद कह कर दूसरे में दाग खोज रहा, कुछ महाभष्टारचारी तो हजारे फैन क्ल ब भी बना रहे हैं दरअसल मीडियापरस्तअ लोगो के लिेऐ अपनी पहचान को मान्यखता देने के लिऐ अन्ना् एक सरल माध्यम बन गया हैं, अन्ना के साथ के लोगो पर जो कुछ कहा जा रहा हैं वह तथ्योे से अलग नही हैं, जाहिर सी बात हैं कि अन्ना टीम का सदस्य बन कर कोई अपने को पाक साफ नही कह सकता ,ये अलग बात हैं की इस टीम पर उगली उठाने से पहले हर कोई अपनी करतूतो से बचने का साहस नही जुटा पा रहा हैं, जन्त,र मन्तहर की भीड ये जरूर कह रही थी कि भष्टाईचार हैं, पर कोई एक् भी अपने को भष्टाकचारी बताने का साहस न जुटा सका और यही हाल हजारे कंपनी का था वह भी किसी एक को भी भष्टाकचारी कहने का साहस न दिखा सकी, फिर ये सवाल साफ है कि कौन हैं जिसके खिलाफ से रस्मनअदायगी हो रही हैं, सब्जीी वाले से कांटा अपने तरफ झुका कर खरीदारी करने व समय और ओहदे की बात कह कर शार्टकट और सुविधाशुल्की जैसे रास्तोी से काम निकालने वाले क्याव अपेक्षाकंत कमजोर लोगो के लिऐ भष्टा चारी नही तैयार कर रहे और फिर जब अपनी जेब इसी सुविधाशुल्के के लिऐ साथ न दे तो हाय तौबा , सदी का महानायक कहे तो ठण्डा ठण्डाट कूल कूल , रामदेव जी की मंहगी दवाईया बेचे , तो आयुर्वेद सेवा... नुकक्ड का शाही दवाखाना के लिऐ ये गलत बात हैं कहां और कैसे हैं हमारे मापदंड ........? हर बार होता यही हैं कि हम कौऐ के पीछे दोड रहे हैं अपने कान पर हाथ लगा कर देखने के बजाय बुनियादी सवाल ये हैं कि प्रजातंत्र के किस स्तबम्भह से आस लगाऐ कार्यपालिका, न्याथयपालिका, व्य यस्था पिका और पत्रकारिता, सब तो सुविधा के मधुमेह और भष्टा चार के प्रेशर से लकवाग्रस्त होते जा रहे हैं, लोकपाल में क्याक नया होगा कुछ नये कानून कायदे बन जाऐगे पर सीधा सवाल तो ये हैं कि क्याा पहले कानून कम थे.....? चौराहे पर खडा हवलदार बिना नम्ब र , पेपर और लाइंसेस के वाहन को नजरअंदाज कर सौ रूपये लेते हुऐ ये कहता हैं कि भैयया उपर तक हिस्सा. जाऐगा तो पुरा यातायात सिस्टिम ही तो सौ रूपये से ही हमारी जेब में आ गया, जिन्हे देश का निर्वाचन आयोग ये बताता हैं कि मताधिकार आपकी ताकत और हथियार हैं, युवा देश का भविष्यौ, उन सब केा तो देश के सयाने अपने महत्व कांक्षा के लिऐ पौव्वा , पुडी, पैट्रोल और पैसे में खरीदकर हडताल आगजनी रेल रोड रोकने सरकारी सामान को नुकसान पहुचाने में बडे आसानी से उपयोग कर रहे हैं कया इनके लिऐ कानून नही हैं ,सुबह की अखबार के दस मिनट देर से पहुचने पर नाबालिक हाकर पर तेवर दिखाने वाला बाबु अपने दफतर में क्यो नही समय पर पहुच पाते…? , दूसरे को संयम सादगी और सात्विक चरित्र का पाठ पढाने वाले ही बाबा किस्मक लोग मीडिया और अपने नेता किस्मा के चटरे पटरे लोगो के साथ मिलकर करोडो की जमीनो पर अरबो के पांच् सितारा आश्रम बना कर बिना किसी प्रमाणिकता की जडी बूटी के साथ उस आध्याेत्मे को बेच रहे हैं जिसका अंधविश्वाीस के साथ काफी करीबी संम्बान्धि है, इसी तरह देश में ढेरो ऐसे संगठन माफिया जो कोडियो के भाव करोडो की जमीनो हथिया के स्कूकल /अस्पवताल के शो रूम चला रहें हैं उपयोगिता ऐसी की घर के बच्चेो और मरीज दूसरे स्कूकल /अस्पनताल में जा रहैं हैं, तमाम सरकारी की जनपक्षधर सरकारी योजनाऐ इसी तरह के पटिया छाप नेताओ के जेब में, गरीब के घर बिजली पानी और सरकारी सस्ते दर का अनाज भी पहुचेगा तो व्हाहया सरकारी दलाल, क्यास इन सबके लिऐ कानून नही हैं, जिस मीडिया से बुद्विजीवी कुछ उम्मी दे रखता हैं वे सरकार से अपने कर्मचारीयो की वेतन व खर्चे ले रही हैं, बाजार के विज्ञापन और प्रयोजन के व्या,भिचार में मस्ति हैं, देश का समूचा पुलिसतंत्र राजनीति का लठैत बना हुआ हैं , सवा सौं करोड की आबादी के ये बुनियादी सवाल हैं क्याय इन सब के विवेक और पौरूषता में उतेजना के लिऐ तो पहले ही हमारे पास ढेरो कायदे कानून नही हैं, आश्यसकता तो आत्म विश्वाास और उत्सायह जगाने की हैं, जबकी देश में समस्याो के खडे होते ही आयोग बैठ जाते हैं, जो राजनैतिक सत्ताक सुख् के खेल का ही हिस्साइ हैं, अशंका तो ये भी हैं ये लोकपाल जिसके के सयानेा के लिऐ जल्दय ही सुरक्षा की मांग उठेगी, फिर धीरे से खडा हो जाऐगा देश में एक और मंत्रालय.....जिसके लिऐ जरूरत पडेगी तमाम मंत्री, संत्री, दफतर ,बाबु और जिन सब का खर्च की अदायगी करके देश के भष्टांचारी,अपनी छाती पर ईमानदारी का तमगा लगाकर पाक साफ बताऐगे,
बेहतर तो ये था कि सत्ताी सुख पर अकुंश लगाया जाऐ जनप्रतिनीधि विकाश करने के बजाय केवल उस पर नजर रखे विकाश का काम नौक्र शाहो पर छोडा जाय , साथ ही सरकारी सेवा का कार्यकाल कम किया जाऐ चुनाव के मतपत्र पर स्पिष्ट रूप से इनमें से कोई नही का भी कालम शुरू किया जाऐ और कडाई से हर क्षेत्र में अधिकार और दायित्वम की सुनिश्चितता करने की दिशा में कार्य करने से कुछ बेहतर परिणाम मिल सकते हैं .....सतीश कुमार चौहान ,भिलाई 098271 13539
बेहतर तो ये था कि सत्ताी सुख पर अकुंश लगाया जाऐ जनप्रतिनीधि विकाश करने के बजाय केवल उस पर नजर रखे विकाश का काम नौक्र शाहो पर छोडा जाय , साथ ही सरकारी सेवा का कार्यकाल कम किया जाऐ चुनाव के मतपत्र पर स्पिष्ट रूप से इनमें से कोई नही का भी कालम शुरू किया जाऐ और कडाई से हर क्षेत्र में अधिकार और दायित्वम की सुनिश्चितता करने की दिशा में कार्य करने से कुछ बेहतर परिणाम मिल सकते हैं .....सतीश कुमार चौहान ,भिलाई 098271 13539
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