हमारे आपके आस पास की बाते जो कभी गुदगुदाती तो कभी रूलाती हैं और कभी दिल करता है दे दनादन...

Wednesday, September 23, 2015

सोशल मीडिया का संशय .........................

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पिछले दिनो कुछ भक्‍तो की लगातार गाली गलौज व धमकी से तंग आकर एन डी टी वी के पत्रकार रविश कुमार ने अपने टिव्‍टर और फेसबुक एकाउण्‍ट ही बंद कर दिया , लगभग इसी समय खबर आती हैं कि जी टी वी के उस पत्रकार को जेड श्रेणी की सुरक्षा मिल जाती हैं जिसे जिंदल ग्रुप से पेड न्‍यूज के लिऐ एक करोड रूपये मांगने के आरोप में जेल की सजा भी मिल चुकी हैं, खबर ये भी हैं कि व्‍‍हाट शाप,‍ टिव्‍टर और फेसबुक एकाउण्‍ट पर सरकार नजर ही नही रखेगी बल्कि नब्‍बे दिनो तक इनके मैसेज मिटाऐ नही जा सकेगें ,,,,,,,,,,
       सोशल मीडिया निश्‍चय ही प्रभावी तो हैं फेसबुक ,ट्विटर आदि साइट्स पर सक्रिय जनमानस समाज के ही विभिन्न तबकों ,विचारधाराओं के वे भडासी लोग हैं  ही तो हैं, जो समाज और उसकी व्‍यवस्‍‍था पर नजर रखने के साथ साथ उसे टटोलने और कुरेदने का भी प्रयास करते हैं , जो प्रिंट मीडिया के दौर में संपादक के नाम पत्र लिखा करते थे और अपनी योग्‍यता, रूचि के अलावा अपनी देश, समाज के लिऐ कुछ करने की तमाम इच्‍छा एक संपादक की भरोसे सिमट कर रह जाती थी , जिस पर संपादक का सहमत होना जरूरी होता था, अब व‍ही लोग सोशल मीडिया पर लोग अपनी बात धड़ल्ले और बेबाकी से लिख रहे हैं । अख़बारों के पत्रकारों-सम्पादकों और चिंतकों से ज्यादा लोकप्रिय चेहरे सोशल मीडिया पर सुर्खियां और टिप्पणियां बटोर रहे हैं । आज कल तक अनजान रहे चेहरों  के पीछे बड़े-बड़े चिंतक ,लेखक ,पत्रकार दौड़ लगा रहे है ,उसके लिखे की भर्त्सना या प्रशंसा कर रहे हैं कोई बात छुपाई या दबाई नहीं जा सकती है और यही तो सोशल मीडिया की ताकत है । जो स्‍‍थापित मीडिया के लिऐ चुनौति बन कर उभर गई हैं, अब समाचार की विषयवस्‍तु और उसके पीछे के मनोविज्ञान पर नजर रखने के साथ साथ आवश्‍यकतानुसार पीछे के सच को भी जगजाहिर किया जा रहा है  , सोशल मीडिया, जिसमें पाठक और श्रौता को  कम से कम संपाद‍क अथवा मालिक की विचारधारा के सामने नतमस्‍तक होना जरूरी नही होता, आज समाज व मीडिया के धुरंधर भी सोशल मीडिया पर समाज के अनजाने व्यक्तियों की लिखी बातों ,प्रतिक्रियाओं से सोचने को मजबूर हो रहा है, और जब यही तबका समाज और राजनीति की तमाम विसंगतियो पर सीधे प्रहार कर रहा हैं, जिससे  राजनीति  तिलमिला रही हैं, जनता को बेवकूफ और गुलाम समझने वाली सत्‍ता और अपने खत्‍म होते एकाधिकार से प्रजातांत्रिक व्‍यवस्‍‍था अपने सुनियोजित पैतरों में की जाल में अब स्‍‍थापित मीडिया को जन मीडिया से अलग कर धन मीडिया के गले में अपनी विचारधारा का प‍टटा बांध रही हैं , और जन मीडिया पर नजरे तरेर रही हैं , पिछले 30 अगस्‍त साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित एक बुजुर्ग कन्नड़ लेखक माल्‍लेशप्‍पा एम कालबुर्गी की गोली मार कर हत्‍या इसी तरह दा‍भोरक और  पंसारे की हत्‍या , पत्रकार निखिल वागले को धमकी जैसे सैकडो उदाहरण हैं जो इसी मानसिकता की ओर र्इशारा करते हैं, क्‍या इसके पीछे वो  साम्राज्यवादी सत्ता नही हो सकती जो क्रान्ति-पथ पर भय का अंधेरा कायम रखना चाहती हैं......?
समाज के भीतर सत्ताधर्मऔर राजनीति की बुराइयों को उजागर करने वाला सिर्फ लेखक ही होता है। जिसके विचारों से ही आमजनो में अधिकारबोध और सत्‍ता में दायित्‍व बोध जाग्रत होता हैं,और इसलिऐ  जनता को गुलाम समझने वाली सामंती सत्‍ता लेखक हमेशा खटकता रहता हैं , सच्चा लेखक वही लिखता है जो जनता के पक्ष में लिखा जाना चाहिए। दरअसल अन्‍याय के प्रति आत्‍मबल तो सब में होता हैं पर उसे जाग्रत करने का मार्ग एक कलम द्वारा ही प्रशस्‍त किया जाता हैं  जो निश्‍चय ही हमारी गौरवशाली प्रजा‍तांत्रिक व्‍यवस्‍‍थाओ और सामाजिक सांस्‍क्रतिक ताने बाने के लिऐ आत्‍मघाती साबित हो रहा हैं , सिक्‍के के दूसरे पहलू से इन्‍कार नही हैं सोशल मीडिया का इस्तेमाल भड़काऊ ,गैर जिम्मेदार कृत्यों के लिए भी हो रहा हैं अभद्र भाषा का प्रयोग गैर जिम्मेदाराना हरकतें ,जो अक्षम्‍य हैं, इस‍के लिऐ हमें स्‍वयं ही अपने मापदंड तय करने होगें जैसा कि दूसरे क्षेत्रो के लिऐ भी लागू होता हैं, इस से इन्‍कार नही कि प्रजातंत्र के बिगडते स्‍वरूप में सोशल मीडिया रूपी यह एक चमकदार आईना जिसमें हर कोई अपनी सामाजिक छबि को समझ कर सुधार सकता हैं,  इस पर अंकुश कोई सार्थक विकल्‍प नही हैं ,,,,,,,,,,                            

सतीश कुमार चौहान भिलाई  

Wednesday, September 16, 2015

खूनी राष्ट्रवाद, हत्यारा धर्म और साम्प्रदायिक संस्था के बीच का लेखक

खूनी राष्ट्रवाद, हत्यारा धर्म और साम्प्रदायिक संस्था के बीच का लेखक ........
समाज के भीतर सत्ता, धर्म, और राजनीति की बुराइयों को उजागर करने वाला सिर्फ लेखक ही होता है। जिसके विचारों से ही आमजनो में अधिकारबोध और सत्‍ता में दायित्‍व बोध जाग्रत होता हैं,और इसलिऐ  जनता को गुलाम समझने वाली सामंती सत्‍ता लेखक हमेशा खटकता रहता हैं , सच्चा लेखक वही लिखता है जो जनता के पक्ष में लिखा जाना चाहिए। दरअसल अन्‍याय के प्रति आत्‍मबल तो सब में होता हैं पर उसे जाग्रत करने का मार्ग एक कलम द्वारा ही प्रशस्‍त किया जाता हैं, पिछले 30 अगस्‍त साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित एक बुजुर्ग कन्नड़ लेखक माल्‍लेशप्‍पा एम कालबुर्गी की गोली मार कर हत्‍या कर दी गई, क्‍या इसके पीछे वो  साम्राज्यवादी सत्ता नही हो सकती जो क्रान्ति-पथ पर भय का अंधेरा कायम रखना चाहती हैं......?
      अफसोस की यह हत्‍या भी समाज में किसी बैचेनी को जन्‍म न दे सकी, तमाम राजनीतिक खेमे के लिऐ प्रतिबद्व लेखक जमात भी बस औपचारिकता का निर्वाह करते हुऐ अपनी अपनी भारतीय मीडिया की तरह  शीना की हत्या, इंद्राणी की ग्‍लेमरस कथा, राधे मां की मतबाली में लगे हैं ,सामना तो यह भी नही कर पा रहे हैं, और इसी बेबसी ने तो राजनीति को खूनी राष्ट्रवाद, हत्यारा धर्म और साम्प्रदायिक संस्था के रुप में विकसित कर दिया जो अपने मनसूबो की राह में आने वाले हर रोडे को इस तरह कुचल देना जानती हैं, फिर चाहे वो कालबुर्गी हो या दमोरकर,या फिर पूणे फिल्‍म संस्‍थान में चल रही नियुक्ति‍ को लेकर लंबी लडाई हो , मैं यहां अपनी बात खत्‍म करते हूऐ उदय प्रकाश जैसे लेखकों के प्रति सम्‍मान व्‍यक्‍त करना चाहता हू, जिन्‍होने इस लेखक की हत्या के विरोध में साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाकर यह बता दिया कि जो साहित्यिक संस्था अपने ही लेखक के कत्ल पर कोई बयान नहीं दे सकी, न विरोध की आवाज बुलंद कर सकी ,ऐसे अपंग, अपाहिज, कुंठित, संस्‍‍था को झकझोरना निन्‍तात जरूरी हैं ,..................................

            मुक्‍तकंठ परिवार माल्‍लेशप्‍पा एम कालबुर्गी की हत्‍या पर विरोध व्‍यक्‍त करते हुऐ विनम्र श्रद्वाजलि प्रकट करता है.............................सतीश कुमार चौहान 

Tuesday, September 15, 2015

मीडिया से तार तार होती हमारी मर्यादाऐ .......

     मीडिया से तार तार होती हमारी मर्यादाऐ ..............................
इंद्राणी, पीटर, खन्ना, शीना, राहुल के लगातार चल रहे समाचारो से एकाएक सत्‍यक‍‍‍था, मनोहर कहानीयां, रंगीन कहानीया सब याद आ रही हैं, पर अफसोस इन किताबो के दौर में  धर्मयुग, दिनमान पढने वाली वो जमात जो सत्‍यक‍‍‍था किस्‍म्‍ की किताब पढने वालो को डपटती रहती थी वह बेबसी के सा‍थ अब सिमटती जा रही हैं, इंद्राणी मुखर्जी की गिरफ्तारी को जिस तरह से चैनलों और अखबारों में कवरेज मिल रहा है, वो कोई पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी इसी तरह के कवरेज को लेकर लंबे लंबे लेख लिखे जा चुके हैं। दरअसल चैनल वाले ये मान चुके हैं कि दर्शको को देश विकास और भष्‍टाचार के समचारो में अंतर ही नही समझ नही आता और न ही नेताओ के वादो इरादो पर भरोसा रहता हैं और वह तमाम मेहनत के बाद टी वी के सामने बैठकर कनफूजियाने के बजाय व‍ह इंद्राणी मुखर्जी की तैरती रंगीन तस्वीरों से आंखें सेंकने और तरह तरह के किस्सों से हाय समाज हाय ज़माना कर बतियाने का मौका छोडना चाहता हैं,पर इन समाचारो का चमत्‍कार देखिऐ की पारिवारिक कल‍ह, व्‍याभिचार और हत्‍या, जिससे लोग समाज से शक्‍ले छुपाते हैं उन पर अब बड़े पैमाने की चटकारेदार कवरेज हो रही हैं, .....,आरोपियो द्वारा केमरे के सामने तन कर इंटरव्यू दिया जा रहा.... हमारे प्रेम के तीसरे महीने में ही वो गर्भवती हो गई लेकिन दूसरे महीने में पता चला कि व‍ह बच्‍चा मेरा नही ,एक दूसरे आशिक का है। इधर दूसरा आशिक बोल रहा हैं कि बच्चा हमारा था लेकिन वो मुझसे प्यार नहीं करती थी, इधर मां बहन सफाई देते हुऐ कैमरे को बता रही हैं कि सौतले पिता की नियत खराब थी इसलिऐ वह 15 साल की उम्र में ही घर से भाग गई , अमुक संस्‍‍थान का शादीशुदा मालिक उस पर लटटू हो, और ये मा‍लकिन हो गई फिर शुरू पांच सितारा जिन्‍दगी, दोनो के बच्‍चे होने तो चाहिये थे भाई बहन पर,  रहते थे पति पत्नि बन कर....कहां हैं इसमें  सघर्ष, बेबसी, हमदर्दी व जज्‍बात, बस ग्‍लेमर ही ग्‍लेमर…? जेल जाते जाते भी बड़े पैमाने पर मीडिया कवरेज का तडका, एक महिला अपराधी हो या व्याभिचारिणी या सती सावित्री यह तय करने का काम कम से कम मीडिया का तो नहीं ही है  कुल सिवाय  बेशर्मी के  ...
पर सवाल .कहां, समाज और कहां समाज और परिवार की मर्यादाऐ ? घर के सदस्य का दर्जा पा चुके टी वी को तो  सत्‍यक‍‍‍था, मनोहर कहानीयां, की तरह  सिरहाने के नीचे या किताबो के बीच छिपाया नही जा सकता, अगर इस दलील पर बच्‍चो की चिन्‍ता छोड दी जाऐ की वे समाचार चैनल देखते ही नही इसलिऐ उन पर तो कोई दुष्‍प्रभाव पडेगा नही, पर घर की उस कामकाजी महिला के मनोविज्ञान को तो समझना ही होगा जो पुरूष के साथ कधें से कधें मिलाकर चलने वाले  जुमले में फंस कर चुल्हे चौके के साथ साथ आर्थिक लड़ाई रोज़ क़तरा-क़त   म भी हो रही है । यह भी एक सच्‍चाई है कि उन्‍हे  अपने घर का ख़र्च चलाने के लिए बिजली के बिल के नाम पर चेहरे की रंगत भी बुझानी पडती हैं, ऐसी लाखो करोडो  इंद्राणी मुखर्जी सड‍को पर दिख जाऐगी जो 24 घण्‍टे की अनवरत चलने वाली घड़ी की तरह काम करती हैं जो मॉं भी है, बहन भी, पत्‍नी भी और सहकर्मी भी । उसे  आराम की इजाज़त ही नही है , सुबह बच्‍चों को स्‍कूल के लिए तैयार करने से लेकर, पति का, घर के बुर्जुगों का और ख़ुद का नाश्‍ता, लंच तैयार करना, चाय आदि देना, सफ़ाई आदि फि़र परिवार की धुरी बनकर उसका पूरा बोझ ढोकर ऑफि़स में भी समय पर पहुंचना, ट्रैफि़क से लेकर , ऑफि़स में महिलाकर्मी तक के  ताने सुनना कितना कष्‍ट दायक लगता है जीवन का सफर उसमें भी जरा सर से पल्‍लू सरका की एकता कपूर की सास जेठानी और तो और पडोसने भी लक्षण ,संगत और रंगत सब पर पानी पी पी कर कोसेगीं,

क्‍या हवलदारी करता मीडिया, सत्‍यम, शिवम और सुन्‍दरम की कसौटी में कही फिट बैठ भी पा रहा हैं, या आत्‍मावलोकन की बात कर अपनी सूचना,जागरूकता और मिशन की परम्‍पंरा के नाम पर कारर्पोरेट और राजनीति की चापलूसी के गर्म तवे से अपनी रोटी सेंक रहा हैं, दुर्भाग्‍यजनक पक्ष तो ये हैं कि कुछ पेशेवर लोगो ने निष्‍ठावन पत्रकारो की योग्‍यता कुछ रुपये की वेतन पर हथिया कर सरकार और समाज के बीच एक ऐसा व्‍याभिचार का रिश्‍ता बना लिया हैं, जिसमें ऐन तेन प्रकारेण् मुनाफा ही मूलमंत्र हैं, और इंद्राणी जैसे सुनियोजित समाचारो को इस तरह तूल देकर देश दुनिया के नाम पर आम जनता को दिग्‍भ्रमित रखने षडयंत्र हैं, जिसकी आड में देश की राजनीति और कारर्पोरेट लाबी अपने हितो के लिऐ सवा सौ करोड के देश के आर्थिक व्‍यव्‍हारिक नुकसान के अलावा गंभीर रूप से सामाजिक मनो‍वैज्ञानिक हीनभावना को बढा रहा हैं ......................  सतीश कुमार चौहान, भिलाई 98271 13539