गंगा तू बुलाती ही क्यों हैं ...........?
गंगा में नहाने के लिए लाखों लाख लोग आते हैं , मान्यता हैं कि गंगा में इुबकी लगाऐ बिना तो स्वर्ग में प्रवेश ही नही मिलेगा हैं, यहां अमीर गरीब का भी अनोखा मनोविज्ञान काम करता हैं, एक तबका अपने स्तर पर तो बडे शान शौकत से रहता हैं गली मोहल्लो के नाली नालो को देखते ही नाक सिकोड लेता हैं रूमाल से शक्ल छुपा लेता हैं पर गंगा के पास आते ही ये जानते हुऐ भी की पुरा किया धरा मल मुर्दा मटेरियल इसी गंगा में हैं, फिर भी बडे उत्साह के साथ एक नही सात सात बार डुबकी लगाते हुऐ यह मान लेते है कि तमाम पाप बसा धुल ही गऐ , इसी तरह अपेक्षाकृत आर्थिक रूप से कमजोर नाली नालो के किनारे गली बस्ती में रहने वाले भी उसी उत्साह और आस्था से डुबकी लगा कर महसूस करते है की उसने तो पुण्य पा ही लिया, बडी श्रद्वा से बोतल में भर कर घर ले जाते हैं और पुरे घर में छिटक छिटक कर महसूस करते है कि पतित पावन गंगा घर आ गई , चन्नार्मत में भी घोल घोल कर पीते हैं जबकी इसी पहले वर्ग के लोगो ने पाप खुद को तो धौया ही साथ ही तमाम अपनी व्यवसायिक गंदगी को भी इसी गंगा में बहा कर तिजोरीया भरी,और दूसरा वर्गगंगा के ही समेट लेना चाहता हैं ,
एक स्वभाविक सवाल उठता कि भारत की सनातन संस्कृति पर पौराणिक से लेकर ऐतिहासिक दावा करने
वाले साधु संत और नेता कभी सिन्धु की क़सम खाते नहीं दिखते है ।सिन्धु भी एक नदी ही हैं जिसका भी महत्व कम नही आंका जाना
चाहिये, क्योकीइससे ही हिन्दू हुआ और उसी से बना हिन्दुस्तान । जिसके नाम पर हम
अपने मुल्क कानाम और उसकी पहचान हम धारण करते हैं । क्या हम जब जब अपने को हिन्दु
कहते है तब तब यही सिन्धु याद नही करते, सच तो ये हैं कि चुपचाप
बह रही निर्मल सिन्धु , पाप पुण्य के अर्पण तर्पण के बोझ से इस लिऐ बच गई क्योकी सिन्धु
के किनारे गंगा की तरह जीवन से लेकर
मृत्यु तक के सारे कर्मकांड निपटाने का पाखंड जाप करते धर्म के धन्देबाजो का दखल नही हुऐ, जो
कह नही पाते कि सिन्धु ने बुलाया हैं राजनीति का मिजाज ही ऐसा हैं कि जमुना, नर्मदा,सरस्वती सबके बहाने
हैं समय समय पर मौकापरस्ती के लिऐ सबका आह्वान भी होता हैं, जाने क्यों हम अपनी पहचान सिन्धु घाटी सभ्यता की ऐतिहासिकता
से कम गंगा की पौराणिकता और दिव्यता से ज़्यादा करते हैं । हम सभी आम समझ में
सभ्यता को सनातन के संदर्भ में ही परिभाषित करते हैं । जिसमें ऐसा प्रतीत होता है
कि सिन्धु पर्सनल और गंगा पब्लिक की हैं ,
राजीव ,मनमोहन सिंह और मोदी सबने गंगा पर राजनीति की आवश्यकता पर ध्यान केद्रित किया । लेकिन किसी
ने सिन्धु पर दावेदारी नहीं की । क्या ये सच नही कि सिन्धु ने किसी को नहीं
बुलाया, और न ही इसके किनारे साधु संत नेता अभिनेता अर्पण तर्पण का पांखड बाजार
बना पाऐ । सिन्धु के लिए जाना पड़ता है । इसके पास जाने के लिए तीज त्योहार का कोई
बहाना भी नहीं है । पर सुख तो इसके किनारे भी मिलता हैं ,
कलकल करता निर्मल जल जो बताया नही महसूस किया जा सकता हैं , उत्सव धर्मी जमात द्वारा समय समय पर कुम्भ जैसे आयोजनो के नाम पर गंगा के किनारे भीड बुलाई जाती हैं, जो आते हैं आस्था अथवा अंधभक्ति पर टिप्पणी करने से बेहतर होगा कि गंगा का प्रतिनिध्रित्व करते लोगो के ही चाल चरित्र चेहरो का मुल्यांकन मेलो में लगे पोस्टरो में किया जाऐ , बांग्लादेशियों को रोको और धर्मान्तरण पर रोक लगाओ,कोई हिन्दुओ अपना वंश बढाओ , हिन्दुओ सावधान हो जाओ आदि आदि............
आयोजन की भव्यता धर्म और पूंजी के सत्ता के साथ नज़दीक के रिश्ते और गठबंधन की और संकेत करती है। सरकार के सहयोग के बगैर इस प्रकार की दकियानूसी ताकते आगे नहीं बढ़ सकती, क्या ऐसे आयोजनो से उन यथास्थितिवादियों को बल नही मिलता जो समय समय पर अपने वर्चस्व को बढाने के लिऐ ऐसे आयोजन की उपयोगिता बनाऐ रखने के लिऐ लाखो लाख लोगो इकठा करके उनका मल मूत्र महीनो गंगा में ही बहाते है, भीडतंत्र का ऐसा शक्ति परीक्षण जो वोट बैंक के धुव्रीकरण के साथ साथ व्याभिचार का ऐसा बाजार बनता हैं जिसमें बम बम के नशीले कारोबार और गोरी चमड़ी की विदेशी शिष्यों का जमवाडा ताकत और आस्था का मापदंड माना जाता हैं ।
कलकल करता निर्मल जल जो बताया नही महसूस किया जा सकता हैं , उत्सव धर्मी जमात द्वारा समय समय पर कुम्भ जैसे आयोजनो के नाम पर गंगा के किनारे भीड बुलाई जाती हैं, जो आते हैं आस्था अथवा अंधभक्ति पर टिप्पणी करने से बेहतर होगा कि गंगा का प्रतिनिध्रित्व करते लोगो के ही चाल चरित्र चेहरो का मुल्यांकन मेलो में लगे पोस्टरो में किया जाऐ , बांग्लादेशियों को रोको और धर्मान्तरण पर रोक लगाओ,कोई हिन्दुओ अपना वंश बढाओ , हिन्दुओ सावधान हो जाओ आदि आदि............
आयोजन की भव्यता धर्म और पूंजी के सत्ता के साथ नज़दीक के रिश्ते और गठबंधन की और संकेत करती है। सरकार के सहयोग के बगैर इस प्रकार की दकियानूसी ताकते आगे नहीं बढ़ सकती, क्या ऐसे आयोजनो से उन यथास्थितिवादियों को बल नही मिलता जो समय समय पर अपने वर्चस्व को बढाने के लिऐ ऐसे आयोजन की उपयोगिता बनाऐ रखने के लिऐ लाखो लाख लोगो इकठा करके उनका मल मूत्र महीनो गंगा में ही बहाते है, भीडतंत्र का ऐसा शक्ति परीक्षण जो वोट बैंक के धुव्रीकरण के साथ साथ व्याभिचार का ऐसा बाजार बनता हैं जिसमें बम बम के नशीले कारोबार और गोरी चमड़ी की विदेशी शिष्यों का जमवाडा ताकत और आस्था का मापदंड माना जाता हैं ।
क्या
गंगा किनारे वाले हिम्मत जुटा कर ये बता
सकते हैं कि गंगा सक्रामक रोग कि वैसी ही मरीज बन चुकी हैं जिसके बारे में चिकित्सक
प्रियजनो को भी दूर रहने की सलाह देते हैं जिसके लिऐ बेहतर हैं सिन्धु सा अपना
नितांत अपना माहौल होगा, या गंगा बुलाने के बजाय केदार जैसे दुत्कार दे
...................
आलेख के पति मेरा आसय कतई किसी धर्म संप्रदाय
व राजनैतिक जमात को ठेस पहुचाना नही हैं ये एक विशुद्व गंगा के प्रति चितां हैं......................
सतीश कुमार चौहान
10/6/2014
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