मीडिया से तार तार होती हमारी
मर्यादाऐ ..............................
इंद्राणी, पीटर, खन्ना, शीना, राहुल के लगातार चल रहे समाचारो से एकाएक सत्यकथा, मनोहर कहानीयां, रंगीन
कहानीया सब याद आ रही हैं, पर अफसोस इन किताबो के दौर में धर्मयुग, दिनमान पढने वाली वो जमात जो सत्यकथा
किस्म् की किताब पढने वालो को डपटती रहती थी वह बेबसी के साथ अब सिमटती जा रही
हैं, इंद्राणी मुखर्जी की गिरफ्तारी को जिस तरह से चैनलों और अखबारों में कवरेज मिल
रहा है, वो कोई पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी इसी
तरह के कवरेज को लेकर लंबे लंबे लेख लिखे जा चुके हैं। दरअसल चैनल वाले ये मान
चुके हैं कि दर्शको को देश विकास और भष्टाचार के समचारो में अंतर ही नही समझ नही आता
और न ही नेताओ के वादो इरादो पर भरोसा रहता हैं और वह तमाम मेहनत के बाद टी वी के
सामने बैठकर कनफूजियाने के बजाय वह इंद्राणी मुखर्जी की तैरती रंगीन तस्वीरों से
आंखें सेंकने और तरह तरह के किस्सों से हाय समाज हाय ज़माना कर बतियाने का मौका छोडना
चाहता हैं,पर इन समाचारो का चमत्कार देखिऐ की पारिवारिक कलह, व्याभिचार और हत्या,
जिससे लोग समाज से शक्ले छुपाते हैं उन पर अब बड़े पैमाने की चटकारेदार कवरेज हो
रही हैं, .....,आरोपियो द्वारा केमरे के सामने तन कर इंटरव्यू दिया जा रहा....
हमारे प्रेम के तीसरे महीने में ही वो गर्भवती हो गई लेकिन दूसरे महीने में पता
चला कि वह बच्चा मेरा नही ,एक दूसरे आशिक का है। इधर दूसरा आशिक बोल रहा हैं कि
बच्चा हमारा था लेकिन वो मुझसे प्यार नहीं करती थी, इधर मां बहन सफाई देते हुऐ कैमरे
को बता रही हैं कि सौतले पिता की नियत खराब थी इसलिऐ वह 15 साल की उम्र में ही घर
से भाग गई , अमुक संस्थान का शादीशुदा मालिक उस पर लटटू हो, और ये मालकिन हो गई
फिर शुरू पांच सितारा जिन्दगी, दोनो के बच्चे होने तो चाहिये थे भाई बहन
पर, रहते थे पति पत्नि बन कर....कहां हैं
इसमें सघर्ष, बेबसी, हमदर्दी व जज्बात, बस
ग्लेमर ही ग्लेमर…? जेल जाते जाते भी बड़े पैमाने पर मीडिया कवरेज
का तडका,
एक महिला अपराधी हो या व्याभिचारिणी या
सती सावित्री यह तय करने का काम कम से कम मीडिया का तो नहीं ही है कुल सिवाय
बेशर्मी के ...
पर सवाल .कहां, समाज और कहां समाज और परिवार की मर्यादाऐ ? घर के सदस्य का दर्जा पा चुके टी वी को
तो सत्यकथा, मनोहर कहानीयां, की
तरह सिरहाने के नीचे या किताबो के बीच
छिपाया नही जा सकता, अगर इस दलील पर बच्चो की चिन्ता छोड दी जाऐ की वे समाचार
चैनल देखते ही नही इसलिऐ उन पर तो कोई दुष्प्रभाव पडेगा नही, पर घर की उस कामकाजी
महिला के मनोविज्ञान को तो समझना ही होगा जो पुरूष के
साथ कधें से कधें मिलाकर चलने वाले जुमले
में फंस कर चुल्हे चौके के साथ साथ आर्थिक लड़ाई रोज़ क़तरा-क़त म भी हो
रही है । यह भी एक सच्चाई है कि उन्हे अपने घर का ख़र्च चलाने के लिए बिजली के बिल के
नाम पर चेहरे की रंगत भी बुझानी पडती हैं, ऐसी लाखो करोडो इंद्राणी मुखर्जी सडको पर दिख जाऐगी जो 24 घण्टे
की अनवरत चलने वाली घड़ी की तरह काम करती हैं जो मॉं भी है, बहन भी, पत्नी भी
और सहकर्मी भी । उसे आराम की इजाज़त ही
नही है , सुबह बच्चों
को स्कूल के लिए तैयार करने से लेकर, पति का, घर के बुर्जुगों का और ख़ुद का नाश्ता, लंच तैयार करना, चाय आदि देना, सफ़ाई आदि
फि़र परिवार की धुरी बनकर उसका पूरा बोझ ढोकर ऑफि़स में भी समय पर पहुंचना, ट्रैफि़क से लेकर , ऑफि़स में
महिलाकर्मी तक के ताने सुनना कितना कष्ट
दायक लगता है जीवन का सफर उसमें भी जरा सर से पल्लू सरका की एकता कपूर की सास
जेठानी और तो और पडोसने भी लक्षण ,संगत और रंगत सब पर पानी पी पी कर कोसेगीं,
क्या हवलदारी
करता मीडिया, सत्यम, शिवम और सुन्दरम की कसौटी में कही फिट बैठ भी पा रहा हैं,
या आत्मावलोकन की बात कर अपनी सूचना,जागरूकता और मिशन की परम्पंरा के नाम पर
कारर्पोरेट और राजनीति की चापलूसी के गर्म तवे से अपनी रोटी सेंक रहा हैं,
दुर्भाग्यजनक पक्ष तो ये हैं कि कुछ पेशेवर लोगो ने निष्ठावन पत्रकारो की योग्यता
कुछ रुपये की वेतन पर हथिया कर सरकार और समाज के बीच एक ऐसा व्याभिचार का रिश्ता बना लिया हैं, जिसमें
ऐन तेन प्रकारेण् मुनाफा ही मूलमंत्र हैं, और इंद्राणी जैसे सुनियोजित समाचारो को इस तरह तूल देकर देश दुनिया के नाम पर आम जनता को दिग्भ्रमित
रखने षडयंत्र हैं, जिसकी आड में देश की राजनीति और कारर्पोरेट लाबी अपने हितो के
लिऐ सवा सौ करोड के देश के आर्थिक व्यव्हारिक नुकसान के अलावा गंभीर रूप से सामाजिक
मनोवैज्ञानिक हीनभावना को बढा रहा हैं ...................... सतीश कुमार चौहान, भिलाई 98271 13539
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