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Saturday, May 16, 2020

करोना के नाम पर सरकारी राहत ...


भारत मे पूंजीपतियों की कमी नही है और न ही देश में संसाधन,पैसे,साधन,श्रम और उत्पादन की कमी नही है , हर दिन करोड़ो कमाते वाले भी हैवही दूसरी ओर गरीब लोग,किसान आत्महत्या करने को मजबूर है मतलब  कमी है वितरण की । व्यवस्था में इतनी धांधली है कि नीचे से लेकर ऊपर तक सब जगह भ्रष्टाचार है । कृषि तथा युवाओं का देश यदि सही दिशा में इस्तेमाल किया जाता तो आज भारत की स्थिति कुछ और होती । बड़े कॉरपोरेट इतना लोन लेकर बैठे हैं कि उसे चुका पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। ये लोन का पैसा जनता की ही जमा पूंजी हैं जो वह बैंक में रखने को मजबूर होंगे और बैंक डूब जाएँगे कॉरपोरेट लोन की वजह से। 
देश मे 71%जंगल है,92% कोयला है, 92% बॉक्साइट, 98% लोहा,100% यूरेनियम, 85% तांबा, 65% डोलामाइट भारत के उद्योगों के लिए 80% कच्चा माल इन्ही से प्राप्त होता है । जहां खनिज संपदा है यहां के निवासी बहुत गरीब है । पूंजीपति और उद्योगपति इन जगहों को हड़पने की हर जुगत में ल​गे रहते ​​​​​​​​ है और और यहां के निवासी अपने अस्तित्व को बचाने में ।
​करोना के कारण ​सरकार कुछ दर्जन उद्योगपतियों का 68,000 करोड़ माफ़ कर देती है परंतु ​14 करोड मजदूरों को सिर्फ़ 3500 करोड़ देने की बात करती है।
 बिजनेस अखबारों ने भी 20 लाख करोड़ के पैकेज का पोस्टमार्टम करना शुरू कर दिया है.........वो बता रहे हैं कि कल वित्तमंत्री द्वारा घोषित किये गए पैकेज की ज्यादातर घोषणाएं क्रेडिट गारंटी से जुड़ी हैं। इसमें से कोई अतिरिक्त बोझ सरकार पर तभी पड़ेगा, जब किसी तरह का डिफॉल्ट हो जाए,घोषित पैकेज के गुब्बारे की हवा आज सुबह शेयर बाजार ने निकाल दी गुरुवार को भारतीय शेयर बाजार में सेंसेक्‍स शुरुआत 600 अंकों की बड़ी गिरावट के साथ हुई है, साफ दिख रहा है कि जो मार्केट को उम्‍मीद थी कि सीधे तौर पर फायदा पहुंचाया जाएगा. वह पूरी नही हुई , इंडस्‍ट्री को लग रहा था कि सीधे तौर पर बड़ा आर्थिक पैकेज दिया जाएगा. लेकिन अब साफ दिख रहा है कि भारत के कारोबार जगत को सीधे तौर पर राहत नहीं मिलने वाली है.MSME सेक्टर के लिए जारी किए गए एकमुश्त 3 लाख करोड़ रुपये के पैकेज समेत इस पूरी रकम के लिए सरकार के खजाने पर सिर्फ 56,500 करोड़ रुपये का ही बोझ पड़ेगा। ओर जो 56,500 करोड़ रुपये खर्च होने हैं, उसमें 50,000 करोड़ रुपये का हिस्सा टीडीएस और टीसीएस की दरों में 25 फीसदी की कटौती का है। इसके अलावा 4,000 करोड़ रुपये कर्ज में फंसी MSME की मदद के लिए आवंटित किए गए हैं और 2,500 करोड़ रुपये से सरकार ने छोटी कंपनियों के कर्मचारियों के पीएफ को जमा करने का फैसला लिया है
सरकार की ओर से अब तक करीब 13 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया जा चुका है, उसमें से सिर्फ 1.26 लाख करोड़ रुपये सरकारी खजाने से जाने हैं। बिजनेस टुडे के विश्लेषण के मुताबिक अभी के 56,000 करोड़ और मार्च में जारी हुए 1.7 लाख करोड़ रुपये में सरकार की ओर से खर्च हुए 70,000 करोड़ को जोड़ दें तो यह रकम 1.26 लाख करोड़ रुपये हो जाती है। यानी कुल 13 लाख करोड़ का पैकेज में सरकार का वास्तविक हिस्सा मात्र सवा लाख  करोड़ ​ ​,
'आत्मनिर्भर भारत अभियान  की बात को मीडिया ऐसे पेश करेगा जैसे मोदी जी ने कोई अनोखी निराली बात कह दी हो, 2019 की आखिरी 'मन की बात' में ओर बनारस में दिए गए भाषण में ये 'लोकल खरीदो' 'लोकल को प्रमोट करो' वाली बातें ये पहले भी कर चुके हैं........दरअसल 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' भी 'मेक इन इंडिया' स्टैंडअप इंडिया, स्टार्टअप इंडिया ओर स्किल डेवलपमेंट के लिए बनाए गए 'स्किल इंडिया' का ही मिला जुला रूप है जिसे ये अपने पहले कार्यकाल के पहले साल में बड़ी जोरशोर से लेकर आए थे लेकिन कालांतर में वह कहा गायब हो गए पता ही नही चला, अब मोदी जी न तो स्टैंडअप इंडिया-स्टार्टअप इंडिया, का नाम लेते हैं न, स्किल इंडिया का न मेक इन इंडिया का ,मेक इन इंडिया की घोषणा 15 अगस्त 2015 को हुई, 'मेक-इन इंडिया' को शुरू हुए 6 साल बीत चुके हैं लेकिन देशी विदेशी विनिर्माता कंपनियों ने भारत में कारखाने लगाने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। चीन से पलायन कर रही कंपनियां आज भी भारत में कोई दिलचस्पी नही दिखा रही है जबकि इस दौरान अमेरिका चीन के बीच ट्रेड वार तक शुरू हो गयी है, भारत के पास सबसे बेहतरीन मौका था लेकिन हमने उसे गंवा दियामूलतः मेक इन इंडिया अभियान मैन्युफैक्चरिंग की गति को बढाने का अभियान था जिससे रोजगार जैसे लक्ष्य आसानी से प्राप्त होते मेक इन इंडिया में मूल लक्ष्य निम्न थे......
1)विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 12-14 फीसदी सालाना तक बढ़ाना....
2)2022 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण की हिस्सेदारी 16 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करना........
3)2022 तक विनिर्माण के क्षेत्र में 10 करोड़ रोजगार का सृजन करना...और रोजगार की हालत तो आप अच्छी तरह से जानते है आँकड़े छोड़िए अपने घर के या अड़ोस पड़ोस के बेरोजगार को ही देख लीजिए............
अभी भी ये ही हो रहा है आत्मनिर्भर भारत अभियान' ओर 'विशेष आर्थिक पैकेज' के नाम पर देश की जनता को दुबारा भरमाया जा रहा है मीडिया की सहायता से जनता को दुबारा मूर्ख बनाया जा रहा है.......जनता दुबारा मूर्ख बनेगी........ क्योंकि मीडिया पुरानी योजनाओं की तो बात करता ही नही है.....जो सवाल करता है उसे ही पहले कठघरे में खड़ा कर देता है सबको सकारात्मक रहने उर्फ़ 'सरकारात्मक' रहने के पैसे जो खिलाए जा रहे हैं.........

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