पिछले दिनो सपरिवार एक मंदिर जाना हुआ, जी.ई.रोड पर कुछ चढावा लेने के उदेश्य गाडी रोक ली भीड भाड तो काफी थी दुकाने भी थी,पर श्रीफल अर्थात नरियल ही नही मिल रहा था, दो चार दुकान घुम कर हम एक दुकान के सामने कुछ बढबढाऐ की दुकानदार पास की शराब दुकान की ओर ईशारा करते हुऐ कहने लगा जनाब ये बाजार भीड शराबीयो की हैं, यहा पानी पाउच चना मसाला अण्डा चिकन चिल्ली मिलेगा कहां आप नरियल तलाश रहे हैं, बात बात में जब हमने पास के मंदिर की बात की, तो वह और टेढे होते हुऐ बोलने लगे मंदिर में तो नरियल मिलेगा ही और वहां भी कौन आप को नरियल फोडने देगा, अब पांच सितारा लेबल की मंदिर बन रहे हैं , जहां तेल सिन्दूर धूप बत्ती,बेल पत्ती के लिऐ स्थान ही बाहर कर दिया गया हैं,अब जो चढता हैं वो मंदिर की रोलिंग सम्पति हैं जो नरियल, शाल,चादर अगरबत्ती के रूप में यहां तक की भोग सामग्री भी मंदिर ट्रस्ट द्वारा मंदिर परिसर में स्थित अथाराइड दुकानो पर ही मिलता हैं, और इन दुकानो पर बिकने वाले तमाम पूजा अर्चना का सामान मंदिर में चढे सामानो ही होतें हैं और हम तो अपने कपडे चार महीने पहन के फैंक भी दे पर भगवान के कपडे सालो साल चलते हैं,भगवान का गर्भगह तो काल कोठरी हैं सा बनाया जाता हैं और तमाम तरह की बेदी के नाम पर पुरा फुटबाल मैदान के आकार की कीमती जमीन घेर दी जाती हैं, मंदीरो में अब चढावा भी गुप्तदान फैशनेबल शब्द बन गये हैं, देश के नब्बे प्रतिशत लोगो का आर्थिक आकडा जिन दस प्रतिशत लोगो के हाथ हैं वे मंदीरो के बांड्र एम्बेस्डर हैं जिनके आने से पहले देश के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को पहले बुलाया जाता हैं इनके दान को भी ऐसे चिल्लाया जाता हैं, जैसे भगवान जी बस इनके हाथो नीलाम हो रहे हैं इनसे ज्यादा चढावा चढा कर भगवान अपने नाम कर लो,कई बार तो ऐसा लगता हैं की मंदिर समितियो विज्ञापन के तौर पर बडे बडे उघोगपतिओ और नेताओ अभिनेताओ को मंदिर समितियो द्वारा पैसा देकर मंदिर बुलाया जाता हैं उससे पहले पुरी मीडिया, अंबानी परिवार और तेल बाम और पहले उत्तर प्रदेश और अब गुजारत के लिऐ बिकने वाले सदी के महानायक इसका त्वरित उदाहरण हैं, रघुनाथ मंदिर के पास तो एक मंदिर का पुरा बाजार हैं जहां तमाम भगवान के पिण्ड रखे है और सबके पास दरबान की तरह सजधज के चोला झोला के साथ पुजारी खडे हो जाते हैं,जिनके बारे में कहा कि ये टेण्डर के भरकर नियुक्त होते हैं जो स्वयं भगवान के पास बडे बडे नोट चढावे के रूप में बिखेर देते हैं और भक्त को भगवान के महिमा में अर्थ लाभ के छलावे में उलझा कर मोटी रकम ऐंठ लेते हैं कई बार भक्त को श्राप भी दिलवाने की बाते करते हुऐ अपमानित भी करते है,इसी तरह दक्षिण के कुछ मंदिरों में पर्दा प्रचलन हैं जहां पहाडी रास्तो अथवा भीड की वजह से त्रस्त हाल में मंदिर चौखट पर पहुचने वाले भक्त की हैसियत का अन्दाजा लगाते हुऐ भगवान की मूर्ति को काले पर्दे में ले लिया जाता हैं और फिर शुरू होते हैं दर्शन के मोल..कुछ क्रम में जैसे देश के कुछ बडे मंदिरो में चल रहा हैं वी. आई. पी. गेट और पास का दस्तूर हैं,भगवान तो बस इनके हाथ की कठपुतली हैं, किससे कब और किस कीमत पर मिलना हैं ये सब मंदिर समितियो को ही तय करना हैं कुछ विचारशील लोगो ने मूर्ति के बजाय व्यक्ति पूजा का सोचा तो मंदिर समितियो ने भिखारीयो को भी भीख मांगने के लिऐ यूनियन द्वारा संचालित हो रही हैं और इनमे भी टेण्डर होता हैं कुल मिलाकर भगवान तो बस इनके हाथ की कठपुतली हैं, किससे कब और किस कीमत पर मिलना हैं ये सब मंदिर समितियो को ही तय करना हैं ..............
और एक उदाहरण हैं देहरादून से मंसूरी जाते हुऐ सुनसान पहाडी पर बने भोले शंकर प्राईवेट लिमटेड मंदिर जहां जगह जगह लिखा हैं यहां किसी भी तरह का फल,फूल,पैसे व प्रसाद चढाना सक्त मना हैं,ऐसा करने पर अपमानित किया जा सकता हैं, और तो और यहां लगातार मिलने वाले प्रसाद जिसे कहेंगे स्तरीय सात्विक भोजन व चाय क्या कहने टेस्ट के बाद ही टिप्पणी हो तो बेहतर.... सतीश कुमार चौहान ,भिलाई
1 comment:
प्रायवेट लिमिटेड मंदिर के प्रसाद का स्वाद लेने की तमन्ना है अवसर आने पर ले लेंगें पर टिप्पणी अभी आवश्यक है. भाई आपने बहुत विचारणीय विषय पर चिंतन प्रस्तुत किया है आजकल छोटे बड़े सभी स्थानों में आस्था के साथ इसी तरह का खिलवाड़ हो रहा है.
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