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Wednesday, September 15, 2010

वाशबेसिन बाम मेरा शहर

हमारे नऐ घर के प्रवेश उत्‍सव की रंगोली भी नही हटी थी कि विकास प्राधिकरण के लोगो ने न घर के दरवाजे पर ही नाली के नाम पर भारी गउडा खोद दिया,पदस्‍‍थ इन्‍जीनियर से बात की तो उन्‍होने पुरे नियम गिना डाले साथ ही सरकारी मजबूरी भी जाहिर करते हुऐ अन्‍त में एहसान जताते हुऐ पुनं पुरा बनवा भी दिया, फिर तो साहब से नियमित हाय हैलो भी होने लगी,एक दिन साहब कुछ कागज पत्‍तर ले कर आऐ और औपचारिकता के तहत सन्‍तोषस्‍पद कार्यसम्‍पन्‍न के प्रमाण पत्र में दस्‍तखत करने को कहने लगे
हमने साहब के साथ चाय पीते पीते पढना शुरू किया नाली की लम्‍बाई, गहराई, पुलिया की संख्‍या, गुणवत्‍ता सब गोलमाल साफ दिख रहा था, काफी भष्‍ट्राचार की बू आ रही थी,, हम एहसान में दबे कुछ टोका टिप्‍पणी करते हुऐ दस्‍तखत कर ही दिये, यही साहब लगभग सत्रह साल बाद कल शाम होम डेकोर के यहां मिल गऐ, समय के साथ साहब में बडे अफसरी का रूतबा झलक रहा था साहब की सरकारी गाडी मयचालक बाहर खडी थी, बातचीत से पता चला साहब अपने घर के लिऐ वाशबेशिन लेने आऐ हैं, पानी के अलावा ठंडा भी पी चुके हैं पर वाशबेशिन नही जम रहा हैं, ,साईज डिजाईन, रंग, गहराई, ब्राड,दाम और फिटिंग का तरिका, कुल मिलाकर कोई न कोई खामी निकल ही रही हैं] साहब इन्‍टरनेट से भी काफी युनिक कलर व डिजाईन की की जानकारी लेकर आऐ थे, दुकानमालिक खिसिया भी रहा था और खीसनिपोर निपोर कर चापलूसी भी कर रहा था, साहब, सीटी इन्‍जीनियर जो थे दुकान का नौकर भी पडोस की दुकानो से भी कई वाशबेशिन ला लाकर थक गया था साहब निश्‍चय ही खर्च,उपयोगिता सुन्‍दरता और आधुनिकता की गंभीर सोच के साथ दूरद्वष्टि भी रखते थे, पर आखिर कयों इनके ही कार्यकाल में बने

शहर में तमाम खर्च के बाद भी अतिउपयोगी दोनो अण्‍उरब्रिजो में हर मौसम में पानी भरा रहता हैं,एक मात्र ओवर ब्रिज भी शहर के लिऐ नकारा हो गया, पुरे शहर की नालीया जाम होकर सडती रहती हैं, आखिर क्‍यों इस शहर में गढढो में ही सडक दिखती हैं, पोस्‍टरो में चांद सितारो से बाते करते मेरे शहर में बुनियादी आश्‍यकताओ के नाम पर लूट का आर्थिक व्‍याभिचार की शुरूआत भी इन्‍ही के कार्यालय से होती हैं, आखिर क्‍यों सरेआम चल रहा हैं,
आखिर मेरे शहर को वाशबेशिन बनाकर बहते पानी में हाथ तो सब धो रहै हैं पर..................




सतीश कुमार चौहान , भिलाई

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