आज पुरे अधिकार के साथ सब कुछ समाज से नोंच लेना देश में बढती बेबसी और गरीबी का मनोविज्ञान भी ऐसा ही बन रहा हैं जिसके साथ वोट बैंक की गंदी राजनीति मिल कर ऐतिहासिक आधार पर धार्मिक और जातिय से भी ज्यादा भयावह रूप से समाज में आर्थिक विषमता की खाई खोद रही हैं, जबकी दूरस्थ व काफी अन्दरूनी और अभाव में गुम हो रही जिन्दगीयो तक न तो सरकार पहुच पा रही हैं न विकास, और न ही किसी को इसकी चिन्ता हैं,संसद में बैठने वाले सयानो को ये बात समझ में आ गई हैं की जनप्रतिनीधित्व का कीडा शहरी सल्म में ही पनप सकता हैं, इस लिऐ अपने इर्दगिर्द्र निकम्मो की जमात तैयार रखी जाऐ जिनके हाथ में कही भी कभी भी झण्डे/डण्डे देकर राजनैतिक ताण्डव से भीडतंत्र का शक्ति प्रदर्शन किया जा सके, और यही लोग आज छाती पर गरीबी का मेडल लगाऐ सरकार द्वारा दी जा रही बैसाखी के सहारे देश के मध्यम वर्ग पर लगातार बोझ बनते जा रहे हैं, सरकार भी अपने वोट बैक क्ै च्श्मे से देखते हुऐ तमाम बुनियादी समस्याओ मसलन सही पानी, सडक, स्वास्थ, शिक्षा और रोजगार के बजाय गरीब बनाने बताने और गिनाने को ज्यादा श्रेयकर समझ रही,
पिछले दिनो एक लोकल चैनल की रिर्पोट की अनुसार एक छतीसगढ के पुरे एक कस्बे की पुरी आबादी से भी ज्यादा वहां गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालो के नाम दर्ज हैं जिनके राशन कार्ड भी बन गऐ हैं और चाउर वाले बाबाजी के सौजन्य से रूपयया किलो चावल भी बंट रहा हैं जबकी इस कस्बे में राज्य के तमाम अन्य कस्बो की ही तरह कारे, बंगले ,मोटरसायकल और तमाम ऐशो आराम के साधन भी उपलब्ध हैं , जाहिर हैं ये खेल कैसा किनका और किसलिऐ चलाया जा रहा हैं, एक दौर गरीबी हटाने का था जिसमें अफसरो और नेताओ मिलकर गरीब को ही हटाना श्रेयकर समझा, आज प्रदेश को खेती, खनिज और मेहनत की सम्पन्नता के लिऐ पुरे देश में ही नही विश्व में भी जाना जाता था, आज वहां का हर आदमी गरीब होने का सबूत लिऐ घुम रहा हैं जनकल्याणकारी योजनाओ के बाद भी गरीबी का आकडा इस दुर्भाग्यजनक ढंग से क्यो बढ रहा हैं......? इस बात की पुरी गुजांइस हैं कि राजतंत्र के लिऐ देश के लिऐ गरीबी व अभाव सदैव एक बडा मुद्रदा रहा है और आगे भी कम से कम प्रजातंत्र के साथ तो बना ही रहेगा,यहां इस बात पर भी चिन्ता बनी ही रहती हैं की गरीब कहा किसे जाऐ...,आजादी के छ दशक के बाद भी हम सरकारी अस्पताल के इलाज से कतराते हैं, पेडो के नीचे सकूल बदस्तूर चल रहे हैं जहा बच्चे पढने नही मध्यांन भोजन के लिऐ के लिऐ आते हैं, सडक पानी सब सरकारी योजनाऐ अराजकता के गंद से दूषित हैं, राज्य सरकार इस बात से मंत्रमुग्ध हैं कि वे मुफत में आनाज बिजली पानी शिक्षा बांट कर गरीब बनाने में अव्वल हैं, किसी को भी नऐ विकास योजनाओ , कल कारखानो और खेती की उन्नत् तकनीक, के विकास में कोई रूचि नही दिखती, और अन्तंत असंगठित मध्यम / औसत शिक्षित वर्ग के उपर तमाम बोझ डाल दिया जाता है, जो लगातार आर्थिक बोझ तले पिस रहा हैं,......
सतीश कुमार चौहान , भिलाई
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2 comments:
bahut sateek
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बहुत अच्छी रचना,
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ऐ कॉमनवेल्थ तेरे प्यार में
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