हमारे आपके आस पास की बाते जो कभी गुदगुदाती तो कभी रूलाती हैं और कभी दिल करता है दे दनादन...

Wednesday, December 22, 2010

हमारे शहर के गली नाली की साफ सफाई के लिऐ होने वाले निकाय चुनाव में ........ ल जीताना हे हमर पारा में दारू दुकान खुलाना हे..., इस तरह के नारे आम हैं, शहर में इस स्त र के चुनाव का भी काफी शोर हैं तमाम मंत्री संत्री भी खीस निपोरे हाथ पसारे घूम रहे हैं , प्रदेश के मुखिया भी चेता कर चले गऐ कि मुझे, मेरे दल के पार्षद और महापौर मिले तब ही आपके लिऐ विकास करूगा नही तो ................... मेरे व्य वसायिक क्षेत्र में चुनावी आहट के साथ ही गहमागहमी का शबाब महसूस होने लगा था, हर दो मिनट में ढोल नगाडो के साथ कुछ लोगो का जथ्थाे झण्डाह लहराते चिल्लामते घूम रहा हैं, जगह जगह हाथ जोडे प्रत्या शीयो के बडे बडे कटआउट लगे हैं, मीडिया के दफतरो में भैयया पान , गुटका, शाम को बैठते हैं, कोर्इ बतला रहा , कोई जतला रहा तो कोई फुस्स फुसा रहा हैं,फलैक्सट डिजार्इन बनाने वाले के यहां लोग लाईन लगाऐ खडे हैं फलैक्स ,आपसेट,लैडल मशीने तो रात दिन चल चल कर हांफ रही हैं,बच्चेह बच्चेक हाथो में हैण्डल बिल लिऐ बाटते हुऐ घुम रहे है, राजनीति के दलाल पौव्वाइ, पुडी, पैसा और पैट्रोल के हिसाब बनाने में मस्त हैं अर्थात भीडतंत्र का महाकुभं गोते लगाऐ जाओ .....हमारे निर्माण कार्य में बढते चुनावी शबाब के साथ लेबर की संख्याा लगातार घटती जा रही थी, कुछ लोगो प्रत्यामशीयो के समर्थक बन कर घूमने के रोजगार में लग गऐ थे, रोज के पौव्वा., पुडी, पैसा और पैट्रोल का इंतजाम तो था ही और सत्ताज सुन्दथरी से निकटता का ख्वाबब भी था चुनाव के एक दिन पहले तो एक मजदूर ने यह कह कर दो दिन की छुट्रटी कर दी की घर पर तीन चार चेपटी इकठी हो गई उसे पी कर खत्म करना हैं साहब इसलिऐ दो दिन नही आउगा, हमने चुनाव आयोग और प्रशासन की बात की तो उसने शिकायत कर कौन मरेगा कह कर बस्तीरयो का हाल बयान कर दिया, यह बात न मीडिया से छुपी हैं न प्रशासन से पर घण्टीब कौन लटकाऐ, दरअसल मुठ्रठी भर बुद्विजीवियो के विवेक और अनुशासन की बाते शेष बची प्रतीत होती हैं ,रात को शराब का खुला प्रयोग सत्ता पक्ष के लिऐ बिल्कुील आसान सी लाभदायक प्रक्रिया हैं,


सुबह पडोस के बंगाली दादा ने यह कर सच का सामना करा दिया की उन्हें् तो अपने वार्ड के प्रत्याहशीयो की शक्ल तो क्यास नाम भी नहीा मालूम, जाहिर हैं मंहगी दरो पर जमीन खरीदकर, बिजली ,सडक ,पानी जैसी बुनियादी आवश्याकताऔ को खुद जुटाने व भारीभरकम टैक्सक देने वाले वर्ग के लिऐ इन प्रत्यानशीयो की कोई खास आश्यनकता रहती नही और प्रत्याभशीयो को भी अपने योग्यकता और क्षमता की औकात इन कालोनीयो में आकर ही महसूस होती हैं इसीलिऐ प्रजातंत्र का यह महापर्व गरीबो की बस्तीऔयो में उल्लाोस व उत्सासह दिखाने तक सीमित हैं और इसको चिरस्थााई बनाऐ रखने के लिऐ गरीब और बस्तीा का बने रहना ही जरूरी हैं, अर्थात एक बडा वर्ग निकम्मा‍ ही बना रहे तो तब ही प्रजातंत्र चल सकेगा,

चुनाव बुथ में भी आश्चहर्यजनक किस्म के राजनीतिकार नजर आते हैं,तमाम पट्रिटया छाप लोग झक्‍ कपडे पहने फुस्सआफुसाते रहते तीन नम्बसर पर दीदी, भैयया कैसे याद है न आपको मिली की नही , कहां रहते हो यार कार्यालय में तो सब इन्तबजाम था आप नजर नही आऐ अच्छाय तीसरे नम्बिर पर हैं अपना निशान, देख लो भाई , माता जी संभल कर पैदल आऐ , आप वापस आओ मैं घर पहुचवा देता हूं मां वोट तीसरे नम्ब र पर ही डालना, आपका बेटा खडा....... हैं.... यही लोग शाम को , फिर वही पौव्वा , पुडी, पैसा और पैट्रोल के लिऐ लडते भीडते नजर आते हैं ,तब इनकी दल और प्रत्यािशी के प्रति प्रतिबद्वता तार तार होती नजर आती हैं इनकी डिंगे सुनकर प्रजातंत्र की निष्पनक्ष चुनावी कसौटी फिकी पड जाती हैं, मेरा व्यैक्तिगत इस चुनाव का अनुभव रहा, काफी हाउस में चुनाव प्रभारी सांसद द्वारा बैठ कर मोबाइल से किसी को यह आश्वाुसन दिया जा रहा था कि निंश्चित रहो मौके पर पुलिस देर से पहुचने को बोल दिये हैं ,

मतदान हम आपका अधिकार/दायित्वन तो हैं इसके प्रति मन हमेशा ही खटटा ही रहेगा क्यो की चुनाव हमेशा ही आम ईमली के बीच ही रहेगा .......................... सतीश कुमार चौहान, भिलाई

2 comments:

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

समसामयिक विषय पर अच्छी व गहरी चोट ।

Dinesh pareek said...

अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/