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Saturday, September 11, 2010

रागदरबारी

हमारे एक मित्र काफी दिनो बाद मिले हाथ मिलाते ही कहने लगे अरे यार लिखते हो की छोड दिये , मैने हसं कर बात टालने की कोशिश की तो उन्‍होने सामने एक रंगीन मल्‍टीकलर आफसेट में मलाईदार विदेशी पेपर की किताब रखते हुऐ कहने लगे इसके लिऐ कुछ लिखो यार , निश्‍चय की किताब अनर्तराष्‍टीय कलेवर की दिख रही थी आवरण पर सुबे के मुखिया की आकर्षक फोटो के साथ कुछ सरकारी जुमले लिखे थे किताब के पहले पन्‍ने को देखते ही मैं चौंक गया ये मित्र महोदय संपादक थे उनके घर के बीबी बच्‍चे सब प्रकाशक, वरिष्‍ठ व प्रंबध संपादक साथ ही कुछ राजनैतिक व व्‍यापारी किस्‍म के दोस्‍त संपादक मण्‍डल में थे , यहां मेरे मित्र ही नही जिन लोगो को मैं जानता था उनकी योग्‍यता से किताब ही लेखन/पठन का कही भी तालमेल तो कतई नही बैठ रहा था हां कुछ लोग सेटिग में जरूर माहिर थे ,इसी तरह किताब के बैनर संबोधन पर छतीसगढ कला, साहित्‍य, जनचेतना की सर्म्पित एक मात्र मासिक पत्रिका लिखा भी आंखो को गड रहा था, जो था सब राज्‍य की सरकार का खुल्‍लम खुल्‍ला स्‍तुतीगान था, दरअसल गठन के बाद इस राज्‍य में एकाएक अखबारो और किताबो की तो बाढ सी आ गई हैं, तमाम विज्ञप्तिबाज किस्‍म के लोग अखबारो/ किताबो के संपादक बैठ गऐ हैं, मंत्रालय में घुस बैठे राजनैतिक किस्‍म के तथाकथित साहित्‍यकारो का यह गुरूमंत्र हैं कि मुख्‍य पेज पर सुबे के राजनैतिक आकाओ की फोटो छापकर इसी तरह अन्तिम पेज पर किसी सरकारी योजना का अच्‍छा विज्ञापन छाप दो, बस पक गऐ बीस पच्‍चीस हजार कुछ कमीशन देनी पडेगी चेक आपके हाथ में , कार्यालीयन खानापूर्ति के लिऐ प्रतिया चाहे दस भी छपे , न आफिस न स्‍टाफ, लगे तो स्‍थानीय निगम प्रशासन जनसम्‍पर्क विभाग को पटा सटा के आफिस व घर के लिऐ कोडी के भाव जमीन लेकर ऐश करो


पुरे राज्‍य में रागदरबारी का स्‍तुतीगान अपने चरम पर हैं, हिन्‍दी के गुरूजी बताते थे कि विद्वान लेखक, साहित्‍यकार और कवि बेचारे अपनी पाण्‍डुलिपी सहेजे हुऐ परलोक सिधार गऐ, जिनके किताबे छपी उनके गहने बर्तन बिक गऐ, पर आज आऐ दिन किताबो का विमोचन राजनेताओ के आतिथ्‍य में हो रहा हैं बीच में कमीशनबाज प्रकाशक से लेकर अफसर तक सक्रिय हैं, इसी प्रक्रिया का एक हास्‍यास्‍पद नमूना हैं कि राज्‍य के कई नेता और अधिकारी भी विभिन्‍न अपने को साहित्‍यकार बताने लगें हैं..........कई पेशेवर साहित्यिक पीठ तो ऐसे काम कर रहे जैसे सरकार के लिऐ साहित्यिकार वोट बैंक बना रहे हो.......

धन्‍य हैं देश का प्रिंट मीडिया...... शेष फिर...

सतीश कुमार चौहान , भिलाई