दरअसल
मोदी ने चुनावो में जो चमत्कारी बदलाब की बाते कि थी, उससे डेढ साल में तो कुछ कोई बड़ा आर्थिक सुधार नहीं हुआ है, जिससे देश के
लोग कुछ बेहतर महसूस कर सकें, देश में रहते हुऐ मोदी जी आज लोकलुभावनी बाते ही कर
रहे हैं ,जिसमें योजना कम और मीडियापरस्ती ज्यादा नजर आती हैं, 2014 के आम चुनावो
के बाद भारत में रहने वाले लोग प्रचार की धुंध समझ रहे हैं, प्रभावित होना अलग
बात हैं पर निवेश कमाने के लिऐ ही होगा , रोजगार के अवसर के लिऐ तो हमारे कुटिर
उद्वोग से बेहतर क्या हो सकता हैं पर अफसोस मोदी जी उस चाइना जैसे देशेा के
पालने में झुल रहे है, जिसने पहले ही हमारे घरेलू उद्वोग धधों की कमर तोड दी हैं,एक
सर के बदले पांच सर की बात करने वाले मोदी अब आप युद्वपरस्त देश से अब आप शांति
और संयम का पाठ पढ रहे हो......
जैसा की अब देश कह रहा
हैं, क्या सच
में मोदी जी अपने चुनावी वादो ईरादो को पिछे छोडने के लिऐ विदेशो तक दोड लगा रहे
हैं, 'प्रधानमंत्री जनधन
योजना' की घोषणा में 18 करोड़
लोगों के बैंक खाते खोलना सराहनीय है. पर 47 फ़ीसदी खातों
में पैसे नहीं हैं, 2 अक्तूबर 'स्वच्छ
भारत' अभियान की घोषणा मेंप्रधानमंत्री ने कहा था कि 15
अगस्त 2015 तक देश के सभी सरकारी स्कूलों में
लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग टॉयलेट बन जाएंगे.जो 85 फ़ीसदी स्कूलों में दिख
भी रहे हैं पर 70 में पानी की व्यवस्था अभी भी नही हैं 'स्किल इंडिया' की योजना के तहत हर साल 24
लाख युवकों को प्रशिक्षण की बात तो कि गई जबकी देश भर में हर साल 1.2
करोड़ लोगों को नौकरियों की ज़रूरत हैं, सबसे ज्यादा किरकिरी मोदी सरकार
की सब से बड़ी योजना 'मेक इन इंडिया' हुई, जिसके लिऐ बुनियादी ढांचों के साथ साथ कारखाने और उद्योग के लिए
ज़मीन चाहिए.जिसका पेंच अभी भी राज्य सभा में फंसा ही हैं, टीम मोदी कैमरे के
सामने जी डी पी के आकडो में आर्थिक सुधार के कितने भी दोहे
सुनाऐ पर आमजन आज भी वही प्याज, दाल, आनाज के लिऐ उसी तरह जूझ रहा हैं,देश के सारे इतिहास को धो पोछकर अपना ब्रांड बनाकर विकसित
देशों के साथ निवेश के समझौते कब और कितने सार्थक होगें ये तो समय ही बताऐगा, पर
देश में तो आज तक सडक , शिक्षा, पानी, मंहगाई, बेरोजगारी, भष्टाचारी, भुखमरी
जैसे बुनियादी सवालो और आतंकवादी,नक्सलवाद, जातिवाद, धार्मिक सामाजिक दंगों जैसे
नीतिगत समस्यओ में कोई परिवर्तन नही दिख रहा हैं, मोदी जी दुनिया में घूम घूम विश्वबाजार
के चतुर सयानो से देश की प्रगति व किसानो की आत्म हत्या रोकने गुर सीख रहे हैं ,
विश्व के दो नंबर के जनतंत्र के सवा
सौ करोड लोग को टाटा,बाटा अजीम प्रेम,
जिंदल, अम्बानी और अडानी के आर्थिक विकास और जीडीपी ने सत्ता, राजनीति,
कॉरपोरेट और माओवादियों के बीच गठजोड़ बनाया है. इन चारों का गठजोड़ ने
देश को जो नुकसान पहुचाया हैं क्या , उसी
का विस्तार अब दुनिया के बड़े लूटेरे, विकसित
देशों के गुलाम और लुभावने सेल्समन मार्क, सुन्दर,
मर्डोक, सत्या नडेला, जॉन
चेम्बर्स, पौल जैकब्स के साथ नही हो रहा हैं, अब लड़ाई
हथियारों से नहीं, पानी और भाषा से नहीं बल्कि सूचना
प्रोद्योगीकी से लड़ी जानी है पर क्या फेस बुक से लेकर वाट्स अप पर, बेरोजगारी, किसान समस्या, कुपोषण,
आत्महत्या, बलात्कार, साम्प्रदायिकता
जैसी विकराल समस्याओ का हल भी मिल जाऐगा ? सत्ता की कसौटी
आम चुनाव नही नीतिगत फैसले और इसका कार्यरूप हैं , जो जनता मोदी में टटोल रही हैं
और मोदी विदेशों में ......
सतीश कुमार चौहान ,
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