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Thursday, October 1, 2015

वायदे और विदेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीतने के तुरंत बाद जिस ताबडतोड ढंग से विदेश यात्राओं का सिलसिला शुरू किया वह आश्‍चर्यजनक हैं, आम चुनावो के दौरान जिस चेहरे ने देश में घूम घूम कर ये बताया की पिछले शासक दलो ने साठ पैसठ सालो में देश को लूट लूट कर कंगाल कर दिया, उसी ने सत्‍ता पर काबिज होते ही उसी कंगाल देश के सरकारी खजाने से महज एक्‍ साल में 20 देशों की राजकीय यात्रा की है। आरटीआई के हवाले से इन महज 16 देशों में भारतीय दूतावासों की ओर से 37.22 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। अभी चार देशों ने जानकारी नहीं हैं, इसमें  फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, चीन, मंगोलिया और दक्षिण कोरिया की यात्रा में, फ्रांस से राफेल विमान खरीदेने और कनाडा से यूरेनियम पर करार महत्‍वपूर्ण रहा, पर अभी भी ये कहा जा सकता हैं कि भारत में निवेश लिवा लाने की पुरजोर कोशिश ज्‍यादा सफल होती नही दिखती ,‍इधर देश के लोग अब चुनावी खुमारी ने निकल कर सत्‍ता परिवर्तन के नफे नुकसान के अंक गणित में लग गऐ हैं, इन दौरो पर शुरूवाती तौर पर जो तर्क दिये गऐ उससे कही चीन,पाकिस्‍तान और अमेरिका के व्‍यवहार में कोई सुधार होता नही दिखा, अमेरिका पाकिस्‍तान के प्रति अभी भी नरम ही हैं उसके लिऐ भारत अभी भी एक कबिलाई बाजार हैं , पाकिस्‍तान अपनी करतूतो से बाज नही आ रहा हैं और चीन पुवोंत्‍तर राज्‍यो पर कब्‍जे के फिराक में लगा ही हैं, बंगाल को मिले अप्रत्‍यासित महत्‍व ने उसे और बिगडेल बना दिया हैं , नेपाल का तो साफ शब्‍दो  में कह रहा हैं की उसे भारत बडे भाई के रूप में स्‍वीकार नहीं,इसी तरह प्रधानमंत्री कुछेक ऐसे देश के  नेताओ से व्‍यापार और निवेश की बात को सफल कहकर प्रचारित कर रहे हैं, जो जनसंख्‍या और क्षेत्रफल के लिहाज से हमारे एक राज्‍य के भी बराबर नही हैं,  जिनसे सवा सौ करोड देश को लाभ की संभावना बहुत कम हैं,
दरअसल मोदी ने चुनावो में जो चमत्‍कारी बदलाब की बाते कि थी, उससे डेढ साल में तो कुछ कोई बड़ा आर्थिक सुधार नहीं हुआ है, जिससे देश के लोग कुछ बेहतर महसूस कर सकें, देश में रहते हुऐ मोदी जी आज लोकलुभावनी बाते ही कर रहे हैं ,जिसमें योजना कम और मीडियापरस्‍ती ज्यादा नजर आती हैं, 2014 के आम चुनावो के बाद भारत में रहने वाले लोग  प्रचार की धुंध समझ रहे हैं, प्रभावित होना अलग बात हैं पर निवेश कमाने के लिऐ ही होगा , रोजगार के अवसर के लिऐ तो हमारे कुटिर उद्वोग से बे‍हतर क्‍या हो सकता हैं पर अफसोस मोदी जी उस चाइना जैसे देशेा के पालने में झुल रहे है, जिसने पहले ही हमारे घरेलू उद्वोग धधों की कमर तोड दी हैं,एक सर के बदले पांच सर की बात करने वाले मोदी अब आप युद्वपरस्‍त देश से अब आप शांति और संयम का पाठ पढ रहे हो......  
जैसा की अब देश कह रहा हैं, क्‍या सच में मोदी जी अपने चुनावी वादो ईरादो को पिछे छोडने के लिऐ विदेशो तक दोड लगा रहे हैं, 'प्रधानमंत्री जनधन योजना' की घोषणा में 18 करोड़ लोगों के बैंक खाते खोलना सराहनीय है. पर 47 फ़ीसदी खातों में पैसे नहीं हैं, 2 अक्तूबर 'स्वच्छ भारत' अभियान की घोषणा मेंप्रधानमंत्री ने कहा था कि 15 अगस्त 2015 तक देश के सभी सरकारी स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग टॉयलेट बन जाएंगे.जो 85 फ़ीसदी स्कूलों में दिख भी रहे हैं पर 70 में पानी की व्‍यवस्‍‍था अभी भी नही हैं 'स्किल इंडिया' की योजना के तहत हर साल 24 लाख युवकों को प्रशिक्षण की बात तो कि गई जबकी देश भर में हर साल 1.2 करोड़ लोगों को नौकरियों की ज़रूरत हैं, सबसे ज्‍यादा किरकिरी मोदी सरकार की सब से बड़ी योजना 'मेक इन इंडिया' हुई, जिसके लिऐ बुनियादी ढांचों के साथ साथ कारखाने और उद्योग के लिए ज़मीन चाहिए.जिसका पेंच अभी भी राज्‍य सभा में फंसा ही हैं, टीम मोदी कैमरे के सामने जी डी पी के आकडो में आर्थिक सुधार के कितने भी दोहे सुनाऐ पर आमजन आज भी वही प्‍याज, दाल, आनाज के लिऐ उसी तरह जूझ रहा हैं,देश के सारे इतिहास को धो पोछकर अपना ब्रांड बनाकर विकसित देशों के साथ निवेश के समझौते कब और कितने सार्थक होगें ये तो समय ही बताऐगा, पर देश में तो आज तक सडक , शिक्षा, पानी, मं‍हगाई, बेरोजगारी, भष्‍टाचारी, भुखमरी जैसे बुनियादी सवालो और आतंकवादी,नक्‍सलवाद, जातिवाद, धार्मिक सामाजिक दंगों जैसे नीतिगत समस्‍यओ में कोई परिवर्तन नही दिख रहा हैं, मोदी जी दुनिया में घूम घूम विश्‍वबाजार के चतुर सयानो से देश की प्रगति व किसानो की आत्‍म हत्‍या रोकने गुर सीख रहे हैं , विश्व के दो नंबर के जनतंत्र के सवा सौ करोड लोग को टाटा,बाटा अजीम प्रेम, जिंदल, अम्बानी और अडानी के आर्थिक विकास और जीडीपी ने सत्ता, राजनीति, कॉरपोरेट और माओवादियों के बीच गठजोड़ बनाया है. इन चारों का गठजोड़ ने देश को जो नुकसान पहुचाया हैं  क्‍या , उसी का विस्तार अब दुनिया के बड़े लूटेरे, विकसित देशों के गुलाम और लुभावने सेल्समन मार्क, सुन्दर, मर्डोक, सत्या नडेला, जॉन चेम्बर्स, पौल जैकब्स के साथ नही हो रहा हैं, अब लड़ाई हथियारों से नहीं, पानी और भाषा से नहीं बल्कि सूचना प्रोद्योगीकी से लड़ी जानी है पर क्‍या फेस बुक से लेकर वाट्स अप पर, बेरोजगारी, किसान समस्या, कुपोषण, आत्महत्या, बलात्कार, साम्प्रदायिकता जैसी विकराल समस्याओ का हल भी मिल जाऐगा ? सत्‍ता की कसौटी आम चुनाव नही नीतिगत फैसले और इसका कार्यरूप हैं , जो जनता मोदी में टटोल रही हैं और मोदी विदेशों में ......

                                                                                     सतीश कुमार चौहान ,      

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