हमारे आपके आस पास की बाते जो कभी गुदगुदाती तो कभी रूलाती हैं और कभी दिल करता है दे दनादन...

Friday, October 16, 2015

सत्ता , संगठन और संस्‍‍था से जूझता साहित्यकार ...........

साहित्य अकादमी अवार्ड, सर्वोच्च साहित्य सम्मान है, जो लेखनी के धनी व्यक्ति को भारत सरकार द्वारा शिला पटट के साथ एक लाख रुपये दे कर म्मानित किया जाता हैं ...
साहित्‍य को कविता / कहानी में देखने वाले कुछ लोग सहित शब्द को ताक में रखकर साहित्‍य में अपनी सुविधानुसार विचारवस्‍तु को टटोल रहे हैं, और इसी वजह से साहित्‍य में समाहित सहित, अपने आचरण के ठीक विपरीत विभाजन की बात करता प्रतीत हो रहा हैं ,निश्‍चय ही हम प्रेमी हैं तो ईष्‍यालु भी हैं, जिम्मेदार तो लापरवाह भी. क्षेत्रीय हैं तो राष्ट्रीय भी, य‍‍थायोग अपने बदलते भाव से साहित्य के माध्यम से हमारा मानव मन,समाज-देश एवं संबंधों की जटिलताओं को भी सटीकता से व्यक्त कर सकता हैं ,यह  इतना आसान नहीं होता. साहित्य इस प्रक्रिया को सुगम्य बनाता है. परस्पर विरोधी भावनाओं को उकेरते हुऐ समय एवं स्थान की मर्यादा सुरक्षित कर जटिलताओं को धारावाह रूप से पाठक के समक्ष शिद्दत से पेश करने का काम केवल साहित्य कर सकता हैं. नायक नायिका और प्रकृति के अलावा भी  समाज के प्रति संवेदना,सजगता, समरसता और सर्तकता में ही साहित्‍य की सफलता के बा‍वजूद साहित्य में साहित्‍य के विरोध की गुजांईश भी रहती हैं,

 पिछले दिनो कुलबर्गी, दाभोलकर, पंसारे और अखलाख की हत्या जैसी घटनाओं से साहित्‍य समाज का एकाएक चौंकन्‍ना कर दिया हैं, इससे उस‍की एकाग्रता के सा‍थ तटस्‍थ लेखन पर भी असर पडा है,लिखने पर हत्‍या , समाजसेवा पर हत्‍या , खानपान पर हत्‍या.................... फिर इसके बाद शासन प्रशासन में कोई बैचेनी नही , हाथ मलता पुलिस प्रशासन , राजनीति भी इस पर रोटिया सेंकती, इससे बेबसी तो पनपेगी ही, और इससे साहित्‍यकार को अपने लेखनकर्म की योग्‍यता और समाज के लिऐ इसकी उपयोगिता पर संशय हो रहा है,और सरकारे जिस तरह अपनी सहूलियतो के लिऐ घटनाओं और तथ्‍यो को तोडमोड कर अपने पक्ष में करती दिख रही हैं,ऐसे में विरोध के लिऐ बचता क्‍या हैं  ?, सम्‍मानित होना जितना गर्व का विषय हैं,  उसको लौटना उतना ही पीडादायक होता हैं,जो सम्‍मानित होकर ही महसूस किया जा सकता हैं, साहित्य अकादमी अवार्ड, सर्वोच्च साहित्य सम्मान लौटाने वाले साहित्‍यकार अपनी इसी चितां को सरकार तक पहुचाने का प्रयास कर रहे हैं जैसा कि अप्रैल 1919 में जब जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में रविन्द्रनाथ टैगोर ने 31 मई 1919 को वायसराय को खत लिख कर ना सिर्फ जलियावालाकांड को दुनिया की सबसे त्रासदीदायक घटना माना बल्कि ब्रिटिश महारानी के दिये गये सम्मान को भी वापस कर दिया था । और जब वह पत्र कोलकत्ता से निकलने वाले स्टेट्समैन ने छापा तो ना सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में जलियावाला घटना की तीव्र निंदा भी हुई और टैगोर के फैसले पर दुनियाभर के कलाकार-साहित्यकारों ने अपने अपने तरीके से सलाम किया । तब ब्रिटिश सरकार और दिल्ली में बैठे ब्रिटिश गवर्नमेंट के नुमाइन्दे वायसराय का सिर भी शर्म से झुक गया । और उस वक्त ब्रिटिश सरकार भी यह कहने नही आई कि अगर उसने सर की उपाधि ना दी होती तो कामनवेल्थ देशों में टैगौर को कौन जानता । जैसा कि आज की सरकार और भक्‍तजन इन साहित्‍यकारो के दर्द को महसूस करने के बजाय इनके ही पीछे पड गऐ, 6 अक्टूबर को नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी ने जब दादरी कांड और पीएम की चुप्पी के विरोध में साहित्य अकादमी सम्मान वापस करने के एलान के तुरंत बाद इनकी तमाम योग्‍यता को ताक में रखते हुऐ साहित्य अकादमी के मौजूदा अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने एक साहित्‍यकार के बजाय  एक नौकरशाह की तरह प्रेसवार्ता कर कह दिया कि जो नाम और यश उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से मिला, उसे हम कैसे वापस लेंगे ? भकतजनो ने तो अंकगणित में जोड घटना शुरू कर दिया जो खर्च सम्मान देने के बाद अकादमी ने साहित्यकारों के लिये किया । साहिकत्यकार की किताबों का अकादमी ने दसियो भाषाओ में अनुवाद किया उसे कैसे वापस लिया जा सकता है । बस उन मुद्दों पर बात नही हो रही हैं जिस पर लेखक चिन्‍ता व्‍यक्‍त कर रहा हैं, घात प्रतिघात की राजनीति करते हुऐ साहित्यकार जिनका सरोकार सिर्फ चिंतन,लेखन जो सामाजिक,राजनीतिक परिस्तिथियों की दशा की दिशा देने के लिए होता था उनहें  वामपंथी / काग्रेंसी की लकीर खीच कर बाटा जा रहा हैं सवाल किये जा रहे हैं कि ये साहित्‍यकार पूर्ववर्ती सरकारों के दौरान जब अपेक्षाकृत अति उग्र हिंसाएँ हुईं तब सम्मान लौटाने का ख़याल उन्हें क्‍यो नही आया , क्‍या ये सवाल सत्‍ता,संगठन और संस्‍‍था  नहीं आया। इस आचरण को लेखक के दोहरे आचरण की संज्ञा नहीं दी जा सकती ? इससे एतरा‍ज नही पर क्‍या शुरूवात भी न की जाऐ कुछ पहल तो दिखे .... चुप्‍पी कोई हल नही, देश की सरकार अगर सकरात्‍मक पहल करने के बजाय  सत्‍ता अपने संगठन और संस्‍‍था के साथ साहित्‍यकार के प्रति आक्रमक रुख अपनाऐगेी तो निश्‍चय ही बुद्विजीवी वर्ग की ऐसी बेबसी अघोषित आपातकाल का संकेत है ..........                   सतीश कुमार चौहान   9827113539 

No comments: